Friday, May 23, 2008
Thursday, May 22, 2008
रब मेरा सदगुरु बनके आया मैनू वेख लें दे. मैनू वेख लें दे मथा टेक लें दे.

रब मेरा सदगुरु बनके आया मैनू वेख लें दे. मैनू वेख लें दे मथा टेक लें दे.
बापू मेरा चाँद वर्गा
एस दी कृपा बड़ी निराली
वेख लें दे मथा टेक लें दे
रब मेरा सदगुरु बनके आया मैनू वेख लें दे. मैनू वेख लें दे मथा टेक लें दे.
बापू सदगुरु बनकर आया मैंने वेख लें दे.रब मेरा सदगुरु बनके आया मैनू वेख लें दे. मैनू वेख लें दे मथा टेक लें दे.
बूटे बूटे पानी लावे
सूखे बुटे हरे बनावे
नि ओ माली बनकर आया मैनू वेख लें दे
मैनू वेख लें दे मथा टेक लें दे.
रब मेरा सदगुरु बनके आया मैनू वेख लें दे. मैनू वेख लें दे मथा टेक लें दे.
चिट्टा चिट्टा चोला पावे
सिर ते सोणी टोपी लावे
हाथ विच फुल्ला दा हार मैनू वेख लें दे
रब मेरा सदगुरु बनके आया मैनू वेख लें दे. मैनू वेख लें दे मथा टेक लें दे.
नाम दी उसने पयाऊ लगाई
हरी ॐ नाल दुनिया झुमाई
नाम दा अमृत मैंने पीके वेख लें दे.
रब मेरा सदगुरु बनके आया मैनू वेख लें दे. मैनू वेख लें दे मथा टेक लें दे.
बर्हमज्ञान दी महक पिलावे
जो कोई धयावे ओही तर जावे
बर्हम दा प्रेम स्वरूप मैंने वेख लें दे.
रब मेरा सदगुरु बनके आया मैनू वेख लें दे. मैनू वेख लें दे मथा टेक लें दे.
गुरु दा चरणी तीरथ तारे
मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारे
आया तारणहारा मैनू वेख लें दे.
रब मेरा सदगुरु बनके आया मैनू वेख लें दे. मैनू वेख लें दे मथा टेक लें दे.
जिथे वी ओ चरण छुआवे
पत्थर दिल उतहे पिघल जावे
आया पार उतारन मैंने वेख लें दे.
रब मेरा सदगुरु बनके आया मैनू वेख लें दे. मैनू वेख लें दे मथा टेक लें दे.
गुरुआ दी महिमा गायी न जावे
तिर्लोकी एत्हे झूम जाये
आया पर उतारन मैंने देख लें दे.
रब मेरा सदगुरु बनके आया मैनू वेख लें दे. मैनू वेख लें दे मथा टेक लें दे.
Wednesday, May 7, 2008
श्री आसारामायण अनुष्ठान विधि

श्री आसारामायण अनुष्ठान विधि
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जहाँ पर अनुष्ठान करना हो, वहाँ ईशान कोण ( पूर्व व उत्तर के बीच की दिशा) में तुलसी का पौधा रखें । पाँच चीजों (गोमूत्र , हल्दी, कुमकुम, गंगाजल, शुद्ध इत्र या शुद्ध गुलाबजल) से पूर्व या उत्तर की दीवार पर समान लम्बाई - चौडाई का स्वस्तिक चिन्ह ( ) बनाये तथा उसके बाजू में पूज्य बापू जी की तस्वीर रख दें। फिर जमीन पर सफ़ेद या केसरी रंग का नया , पतला कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर गेहूँ के दानों से स्वस्तिक बना कर उस पर पानी का लोटा रख दें । लोटे के ऊपरी भाग में आम के पत्ते रखें व उन पर नारियल रख दें ।
उसके बाद तिलक करके ' ॐ गं गणपतये नमः ' मंत्र बोलते हुए , जिस उद्देश्य से अनुष्ठान करना है उसका संकल्प करें । फिर श्वास भरकर रोकें और महा मृत्युंजय मंत्र या गायत्री मंत्र का तीन बार जप करें तथा मन में संकल्प दोहराएँ कि 'मेरा अमुक कार्य अवश्य पूर्ण होगा ।' ऐसा तीन बार करें । अनुष्ठान जितने भि इदन में पूर्ण करना हो उनमें प्रत्येक सत्र (बैठक) में यह मंत्र व संकल्प दोहराना है । प्रतिदिन निश्चित संख्या में पाठ करें । अनुष्ठान के समय धुप करें तथा दीपक जलता रहे ।
अनुष्ठान की समाप्ति पर लोटे का जल तुलसी की जड़ में साल दें । गेहूँ के दाने पक्षियों के डालें , नारियल प्रसाद रूप में बाँट दें या बहती जल में प्रवाहित कर दें । गुरुमंत्र के जप से १०८ आहुतियाँ दे कर हवन कर लें तथा एक या तीन अथवा पाँच -सात कन्याओं को भोजन करायें । दृढ श्रद्धा -विश्वास , संयम तथा तत्परता पूर्वक इस विधि से अनुष्ठान करने वालो की मनोकामना पूर्ण होने में मदद मिलती है ।
(स्वामी सुरेशानंद जी के प्रवचन से ) - लोक कल्याण सेतु : अंक १२६ । १६ दिसम्बर २००७ से १५ जनवरी २००८
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