Tuesday, July 1, 2008
http://www.youtube.com/watch?v=A0HaZHhkJXg&feature=related
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ॐ : गुरू पूनम का पर्व है आया - भजन : ॐ
गुरू पूनम का पर्व है आया , झूम - झूम कर मन ने गाया ।
गुरू जी मेरे आ जाओ , साई जी मेरे आ जाओ ॥
साधक झूमें मस्ती में हरि नाम का जाम पिलाया ,
नाचे मनवा लहर - लहर गुरू नाम को तेरे गाया -२
प्यास बुझा जाओ , जल्दी से आ जाओ
गुरू जी मेरे आ जाओ , साई जी मेरे आ जाओ ॥
दूर रहो बच्चो से बापू अब ये सहा ना जाये ,
कितनी पीडा ना मिलने की ये भी कहा ना जाये -२
मिलन बढ़ा जाओ , "शुभ" दर्शन दे जाओ
गुरू जी मेरे आ जाओ , साई जी मेरे आ जाओ ॥
अंतर्यामी बापू ने वेदों का मनन कराया ,
लोभ मोह मद मत्सर के फंदो से हमे छुडाया -२
अमृत पिला जाओ , सत्संग सुना जाओ
गुरू जी मेरे आ जाओ , साई जी मेरे आ जाओ ॥
गुरू जी मेरे आ जाओ , साई जी मेरे आ जाओ ॥
साधक झूमें मस्ती में हरि नाम का जाम पिलाया ,
नाचे मनवा लहर - लहर गुरू नाम को तेरे गाया -२
प्यास बुझा जाओ , जल्दी से आ जाओ
गुरू जी मेरे आ जाओ , साई जी मेरे आ जाओ ॥
दूर रहो बच्चो से बापू अब ये सहा ना जाये ,
कितनी पीडा ना मिलने की ये भी कहा ना जाये -२
मिलन बढ़ा जाओ , "शुभ" दर्शन दे जाओ
गुरू जी मेरे आ जाओ , साई जी मेरे आ जाओ ॥
अंतर्यामी बापू ने वेदों का मनन कराया ,
लोभ मोह मद मत्सर के फंदो से हमे छुडाया -२
अमृत पिला जाओ , सत्संग सुना जाओ
गुरू जी मेरे आ जाओ , साई जी मेरे आ जाओ ॥
ॐ -: हे प्रभु आनंद दाता [प्रार्थना] :- ॐ
हे प्रभु आनंद दाता, ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये
लीजिये हमको शरण में हम सदाचारी बनें
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें
हे प्रभु आनंद दाता.................................
निंदा किसीकी हम किसीसे भूल कर भी न करें
ईर्ष्या कभी भी हम किसीसे भूल कर भी न करें
हे प्रभु आनंद दाता.................................
सत्य बोलें झूठ त्यागें मेल आपस में करें
दिव्य जीवन हो हमारा यश तेरा गाया करें
हे प्रभु आनंद दाता.................................
जाये हमारी आयु हे प्रभु लोक के उपकार में
हाथ ड़ालें हम कभी न भूलकर अपकार में
हे प्रभु आनंद दाता.................................
मातृभूमि मातृसेवा हो अधिक प्यारी हमें
देश की सेवा करें निज देश हितकारी बनें
हे प्रभु आनंद दाता.................................
कीजिये हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा ॐ
प्रेम से हम दुःखीजनों की नित्य सेवा करें
हे प्रभु आनंद दाता.................................
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये
लीजिये हमको शरण में हम सदाचारी बनें
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें
हे प्रभु आनंद दाता.................................
निंदा किसीकी हम किसीसे भूल कर भी न करें
ईर्ष्या कभी भी हम किसीसे भूल कर भी न करें
हे प्रभु आनंद दाता.................................
सत्य बोलें झूठ त्यागें मेल आपस में करें
दिव्य जीवन हो हमारा यश तेरा गाया करें
हे प्रभु आनंद दाता.................................
जाये हमारी आयु हे प्रभु लोक के उपकार में
हाथ ड़ालें हम कभी न भूलकर अपकार में
हे प्रभु आनंद दाता.................................
मातृभूमि मातृसेवा हो अधिक प्यारी हमें
देश की सेवा करें निज देश हितकारी बनें
हे प्रभु आनंद दाता.................................
कीजिये हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा ॐ
प्रेम से हम दुःखीजनों की नित्य सेवा करें
हे प्रभु आनंद दाता.................................
हनुमानचालीसा
॥ दोहा ॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बडाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही। जलधि लाँधि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुडावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अंत काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जै जै जै हनुमान गोसाई। कृपा करहु गुरु देव की नाई॥
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढै हनुमान चलीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
॥ दोहा ॥
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
॥ श्री राम जय राम जय जय राम ॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बडाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही। जलधि लाँधि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुडावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अंत काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जै जै जै हनुमान गोसाई। कृपा करहु गुरु देव की नाई॥
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढै हनुमान चलीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
॥ दोहा ॥
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
॥ श्री राम जय राम जय जय राम ॥
हरि ॐ अहमदाबाद चेटीचंड शिविर (अप्रैल २००८) के मुख्य बिन्दु :
हरि ॐ
अहमदाबाद चेटीचंड शिविर (अप्रैल २००८) के मुख्य बिन्दु :
1. अनित्य में मन नहीं लगाकर नित्य की और बढ़ना शुरू करना चाहिए । समय तेज़ी से निकल रहा है ।
2. रोज संध्या का समय ६५ सेकंड के लिए आन्तरिक कुम्भक और ४० सेकंड के लिए वाह्य कुम्भक पक्का करो । ऐसे ७ प्राणायाम करें ।
3. गहरी श्वास अन्दर लेते समय सोचे की ईश्वरीय चैतन्य को अन्दर ले रहे है .... फिर श्वास रोके तो सोचें कि मैं प्रभु का और प्रभु मेरे, बस ...
और श्वास बाहर निकालते समय सोचें कि सारी पुरानी बातें और सारे निगेटिव विचार बाहर निकल रहे हैं . ऐसे रोजाना प्रयोग करें और ॐ कि धुन में ध्यान में बैठ जायें । ऐसा ४० दिन करें बहुत आध्यात्मिक उन्नति होगी।
4. पेट ख़राब रहता हो तो बाहरी कुम्भक में त्रिबंध लगाकर बैठकर पेट को अंदर-बाहर करिये और मन में रं रं रं जप करिये।
5. जो भी प्राणायाम करें उसे त्रिबंध लगाकर ही करें ।
6. श्वासों श्वास का ध्यान अनिवार्य ।
7. शिशंक आसन में रोज़ बैठना है । २ मिनट बडों के लिए और ३ मिनट स्टूडेंट्स के लिए । वज्र आसन में बैठकर जब सिर को ज़मीन पर लगाते हैं उसे "शिशंक" आसन कहते हैं ।
ध्यान दें : जब बाहरी कुम्भक करें तब वज्र आसन में बैठकर करें ।
8. इन दिनों बिना नमक के खाना सेहत के लिए अच्छा है ।
9. इन दिनों जप बढ़ा दे जब तक नवरात्र हैं ।
10. आंवला रोज़ खाने से आंते शुद्ध होती है । इन दिनों आंवला खाइए ।
11.श्रद्धा का जीवन में बहुत लाभ है । ये विश्व श्रद्धा से चल रहा है न की किसी और से । श्रद्धा बढाओ और भगवान में प्रीती ।
12. रोज़ सुबह उठकर थोडी देर भगवान से बातें करें और रात को सोने से पहले भी । पक्का नियम बना लें ।
अहमदाबाद चेटीचंड शिविर (अप्रैल २००८) के मुख्य बिन्दु :
1. अनित्य में मन नहीं लगाकर नित्य की और बढ़ना शुरू करना चाहिए । समय तेज़ी से निकल रहा है ।
2. रोज संध्या का समय ६५ सेकंड के लिए आन्तरिक कुम्भक और ४० सेकंड के लिए वाह्य कुम्भक पक्का करो । ऐसे ७ प्राणायाम करें ।
3. गहरी श्वास अन्दर लेते समय सोचे की ईश्वरीय चैतन्य को अन्दर ले रहे है .... फिर श्वास रोके तो सोचें कि मैं प्रभु का और प्रभु मेरे, बस ...
और श्वास बाहर निकालते समय सोचें कि सारी पुरानी बातें और सारे निगेटिव विचार बाहर निकल रहे हैं . ऐसे रोजाना प्रयोग करें और ॐ कि धुन में ध्यान में बैठ जायें । ऐसा ४० दिन करें बहुत आध्यात्मिक उन्नति होगी।
4. पेट ख़राब रहता हो तो बाहरी कुम्भक में त्रिबंध लगाकर बैठकर पेट को अंदर-बाहर करिये और मन में रं रं रं जप करिये।
5. जो भी प्राणायाम करें उसे त्रिबंध लगाकर ही करें ।
6. श्वासों श्वास का ध्यान अनिवार्य ।
7. शिशंक आसन में रोज़ बैठना है । २ मिनट बडों के लिए और ३ मिनट स्टूडेंट्स के लिए । वज्र आसन में बैठकर जब सिर को ज़मीन पर लगाते हैं उसे "शिशंक" आसन कहते हैं ।
ध्यान दें : जब बाहरी कुम्भक करें तब वज्र आसन में बैठकर करें ।
8. इन दिनों बिना नमक के खाना सेहत के लिए अच्छा है ।
9. इन दिनों जप बढ़ा दे जब तक नवरात्र हैं ।
10. आंवला रोज़ खाने से आंते शुद्ध होती है । इन दिनों आंवला खाइए ।
11.श्रद्धा का जीवन में बहुत लाभ है । ये विश्व श्रद्धा से चल रहा है न की किसी और से । श्रद्धा बढाओ और भगवान में प्रीती ।
12. रोज़ सुबह उठकर थोडी देर भगवान से बातें करें और रात को सोने से पहले भी । पक्का नियम बना लें ।
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