सदगुरु जैसा परम हितेषी कोई नहीं संसार में
गुरुचरनो में पूर्ण समर्पण तर हो जा भाव पर रे
लख चोरासी भटक भटक कर यह मानव तन पाया है
काम क्रोध मद लोभ में पड़कर इसको व्यर्थ गवाया है
कर सत्संग नाम हरि का जप कर अपना उध्हार रे
सदगुरु जैसा परम हितेषी कोई नहीं संसार में
मानव जनम प्रीति हरि गुरु में बड़े भाग्य से मिलते है
पा सके गुरु की कृपा हिरदय में फूल धरम के खिलते है
धरम वृत्ति बन कर्म हित, कर सबका उपकार रे
सदगुरु जैसा परम हितेषी कोई नहीं संसार में
सदगुरु की तू बात मानकर, हरि चरणों में प्रीति जगा
नारायण नारायण कहकर भाव बंधन सब दूर भगा
राग द्वेष मद अंहकार त्याग सबसे कर ले प्यार रे
सदगुरु जैसा परम हितेषी कोई नहीं संसार में
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