Sunday, February 10, 2008

क्या भरोसा है इस जिन्दगी का

युवा तन को भूल मत जो चाहे कल्याण
नारायण इस मौत को दूजो श्री भगवान

क्या भरोसा है इस जिन्दगी का
साथ देती नहीं ये किसी का
श्वास रुक जायेगी चलते चलते
शमा बुझ जायेगी जलते जलते
क्या भरोसा है इस जिन्दगी का

चार दिन की मिली जिंदगानी हमें
चार दिन में ही करनी मुलाकात है
राख बनकर के एक दिन तो उड़ जायेंगे
उससे पहले तो हरि से मिलना तो है
क्या भरोसा है इस जिन्दगी का

कोई तेरा नहीं सब है धोखा यहाँ
काहे जीवन को यू ही गवाता है तू
राम को भूल बैठा है जिनके लिए
चार दिन में ही तुझको भुला देंगे वो
क्या भरोसा है इस जिन्दगी का

लेके कंधे पर तुझको चले जायेंगे
तेरे अपने ही तुझको जला आयेंगे
चार दिन के मुसाफिर तू सो क्यों रहा
अब तो मोहब्बत कर ले मेरे राम से
क्या भरोसा है इस जिन्दगी का

तुलसी मीरा के जैसे तो है हम नहीं
शबरी की जैसी भक्ति भी हममे नहीं
फिर भी तेरे ही बालक है हम राम जी
हमको अपनी शरण में ले लो राम जी
क्या भरोसा है इस जिन्दगी का

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